एक अरमान बाकी है अभी एक सफर बाकी है,
अँधेरा होने से पहले अभी एक सहर बाकी है,
भले ही न गुनगुनाना गीतों को मेरे ए ज़माने,
मगर अभी इन शेरों में मेरे एक असर बाकी है.
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ना कीजिये इस्तकबाल यूँ गर्मजोशी से हमारा,
बड़े बेशरम बशर हैं,बार बार आयेंगे दर पर तेरे.
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खींच लेती है तेरी पाकीज़गी हर बार अपनी ओर मुझे,
वरना हुस्न के चमन में कमी गुलों की तो नही.
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मैं पीता नहीं शराब न समझो इसे मय से अदावत मेरी,
कि कोई नशा चढ़ता ही नहीं तेरी आंखों से पीने के बाद.
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गुनाह-ऐ-बुत्कशी भी हमने की है तमाम उम्र,
कि इक बुत से दिल लगाकर उसकी परश्तिश की है.
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कातिल के क़दमों मी आज सर अपना रखा है,
कि दरबार-ऐ-हुस्न में हमने सजदा कर रखा है,
नसीब में अपने क्या लिखा है नामालूम 'बशर',
मेरे यार ने पहली ही मुलाकात में परदा कर रखा है.
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ख़ाक छानी है हमने मयखानों की इसी उम्मीद पर,
कहीं मिले कोई जाम ऐसा, नशा जिसमे तेरी निगाहों से ज्यादा हो.
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अब तो आ पहुंचे हैं इश्क के उस मुकाम पर बशर,
आगे विसाल-ऐ-सनम है, या वस्ल-ऐ-मौत यारों.
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ज़ाहिद तुम क्या जानो हमारी परस्तिश का अंदाज,
कि मयकशी भी इबादत है हम मयफरोशों के वास्ते.
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मुतवातर नाकामियों का फ़साना है मेरी मोहब्बत,
स्याह अँधेरी शब हैं, सहर का कहीं जिक्र नहीं.
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है इसी में लुत्फ़-ऐ-इश्क, इसी में मोहब्बत का मज़ा है,
कि मेरी खुशी भी वही, जो मेरे यार की रज़ा है.
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वो जो करते थे हिदायतें इश्क न फरमाने की बशर,
उन्हें आज देखा है हमने, दरबार-ऐ-हुस्न में सजदा करते.
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मयकशों ने मय से अपना वादा, कुछ ऐसे निभा दिया,
मय को खुदा की नेमत ,साकी को खुदा बना दिया !
मय पीना इबादत है मयकशों के वास्ते,
मयखाने को मुबारक, मस्जिद से ज्यादा बना दिया !!
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यारों की बेवफाई में भी वफ़ा ढूँढता हूँ,
मैं अपने ही जख्मों में अपनी दवा ढूँढता हूँ !
मौत की आहट में भी जिंदगी की सदा ढूँढता हूँ,
मैं मर कर भी जीने की अदा ढूँढता हूँ !!
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कैसे आयद करें इल्जाम-ऐ-बेवफाई उन पर,
शायद कुछ मजबूरियां रही होंगी, जो वफ़ा वो निभा न सके !!
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था बड़ा गुमान अपने दिल पर हमें ऐ दोस्त,
पर क्या कहिये की हुस्न ने कोई मौका ही न दिया !
हसीनों से दिल न कभी लगायेंगे, सोचा था,
मगर मेरे बेवफ़ा दिल ने मुझे चौंका ही दिया !!
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यूं तो फासले कुछ कम ना थे मेरे और मंजिल के दरमियाँ,
मैंने कदम जो बढाये उसकी जानिब, वो कुछ और पास आती गई !!
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वो जो कहते हैं की किस्मत तो उनकी मुट्ठी में कैद है,
कभी पूछा है क्या उनसे, तकदीर ने जिन्हें हाथ ही ना दिए!!
Ab-Initio - Air sanbox command. Part 2
8 years ago
4 comments:
bhai .ye to mujhe yaad ho gayi thi.mene ghar pe bhi sabko suna di thi................akhir apne yaad hi itne ache se karwayi thi........
गोपेश जी, बस लिखते रहिये. बहुत अच्छा लिख रहे हो. शुभकामनाएं.
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उल्टा तीर
गोपेश जी
झारखंडी जोहर
आप की अर्ज में मै इशे खोई की लोम्बे अंतराल के बाद
कोई अर्ज किया
उ तो दुनिया पूंजी के पीछे है
और मै और आप
शब्दों के मखाने के पीछे
जरी हो ये अर्ज
Good Dear
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