Friday, June 20, 2008

अर्ज़ किया है

एक अरमान बाकी है अभी एक सफर बाकी है,
अँधेरा होने से पहले अभी एक सहर बाकी है,
भले ही न गुनगुनाना गीतों को मेरे ए ज़माने,
मगर अभी इन शेरों में मेरे एक असर बाकी है.

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ना कीजिये इस्तकबाल यूँ गर्मजोशी से हमारा,
बड़े बेशरम बशर हैं,बार बार आयेंगे दर पर तेरे.

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खींच लेती है तेरी पाकीज़गी हर बार अपनी ओर मुझे,
वरना हुस्न के चमन में कमी गुलों की तो नही.

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मैं पीता नहीं शराब न समझो इसे मय से अदावत मेरी,
कि कोई नशा चढ़ता ही नहीं तेरी आंखों से पीने के बाद.

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गुनाह-ऐ-बुत्कशी भी हमने की है तमाम उम्र,
कि इक बुत से दिल लगाकर उसकी परश्तिश की है.

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कातिल के क़दमों मी आज सर अपना रखा है,
कि दरबार-ऐ-हुस्न में हमने सजदा कर रखा है,
नसीब में अपने क्या लिखा है नामालूम 'बशर',
मेरे यार ने पहली ही मुलाकात में परदा कर रखा है.

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ख़ाक छानी है हमने मयखानों की इसी उम्मीद पर,
कहीं मिले कोई जाम ऐसा, नशा जिसमे तेरी निगाहों से ज्यादा हो.

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अब तो आ पहुंचे हैं इश्क के उस मुकाम पर बशर,
आगे विसाल-ऐ-सनम है, या वस्ल-ऐ-मौत यारों.

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ज़ाहिद तुम क्या जानो हमारी परस्तिश का अंदाज,
कि मयकशी भी इबादत है हम मयफरोशों के वास्ते.

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मुतवातर नाकामियों का फ़साना है मेरी मोहब्बत,
स्याह अँधेरी शब हैं, सहर का कहीं जिक्र नहीं.

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है इसी में लुत्फ़-ऐ-इश्क, इसी में मोहब्बत का मज़ा है,
कि मेरी खुशी भी वही, जो मेरे यार की रज़ा है.

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वो जो करते थे हिदायतें इश्क न फरमाने की बशर,
उन्हें आज देखा है हमने, दरबार-ऐ-हुस्न में सजदा करते.

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मयकशों ने मय से अपना वादा, कुछ ऐसे निभा दिया,
मय को खुदा की नेमत ,साकी को खुदा बना दिया !
मय पीना इबादत है मयकशों के वास्ते,
मयखाने को मुबारक, मस्जिद से ज्यादा बना दिया !!

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यारों की बेवफाई में भी वफ़ा ढूँढता हूँ,
मैं अपने ही जख्मों में अपनी दवा ढूँढता हूँ !
मौत की आहट में भी जिंदगी की सदा ढूँढता हूँ,
मैं मर कर भी जीने की अदा ढूँढता हूँ !!

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कैसे आयद करें इल्जाम-ऐ-बेवफाई उन पर,
शायद कुछ मजबूरियां रही होंगी, जो वफ़ा वो निभा न सके !!

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था बड़ा गुमान अपने दिल पर हमें ऐ दोस्त,
पर क्या कहिये की हुस्न ने कोई मौका ही न दिया !
हसीनों से दिल न कभी लगायेंगे, सोचा था,
मगर मेरे बेवफ़ा दिल ने मुझे चौंका ही दिया !!

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यूं तो फासले कुछ कम ना थे मेरे और मंजिल के दरमियाँ,
मैंने कदम जो बढाये उसकी जानिब, वो कुछ और पास आती गई !!

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वो जो कहते हैं की किस्मत तो उनकी मुट्ठी में कैद है,
कभी पूछा है क्या उनसे, तकदीर ने जिन्हें हाथ ही ना दिए!!

4 comments:

Unknown said...

bhai .ye to mujhe yaad ho gayi thi.mene ghar pe bhi sabko suna di thi................akhir apne yaad hi itne ache se karwayi thi........

Amit K Sagar said...

गोपेश जी, बस लिखते रहिये. बहुत अच्छा लिख रहे हो. शुभकामनाएं.
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उल्टा तीर

aloka said...

गोपेश जी
झारखंडी जोहर
आप की अर्ज में मै इशे खोई की लोम्बे अंतराल के बाद
कोई अर्ज किया
उ तो दुनिया पूंजी के पीछे है
और मै और आप
शब्दों के मखाने के पीछे
जरी हो ये अर्ज

Unknown said...

Good Dear