किसी ने कहा की कुछ लिखो आज,
बहुत दिनों के बाद कुछ मन में आया है
उठाई है फिर कलम कुछ लिखने को
पर अपनी स्याही को फिर सूखा पाया है
तड़पते हैं अन्दर के जज़्बात बाहर आने को
पर हर एक दरवाजा मैंने बंद पाया है
कोशिश जारी है अपने शौक को मकाम पर लाने की
पर बिना पैरों के भी कभी कोई चल पाया है
हसरत है गुलज़ार करने की किताब को लफ्जों से अपने
पर मैंने हर वर्क को पहले से भरा पाया है
अब तो साकित हूँ अपने ही अरमानों के साए तले
क्या मैंने सोचा था और क्या मैंने पाया है
Ab-Initio - Air sanbox command. Part 2
8 years ago
3 comments:
બહુ સુંદર છે...
वाह दोस्त ....
तेरे लिए --
रिश्तों की ये दुनिया है निराली,
सब रिश्तों से प्यारी है दोस्ती तुम्हारी.
मंज़ूर है आंसू भी आखो में हमारी,
अगर आ जाए मुस्कान होठ पे तुम्हारी.
Excellent boss... keep it up....
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