उजड़ी हुई बस्तियों में आशियाना बनाना चाहता हूँ,
ऐ दोस्त मैं तेरी महफिल में आज आना चाहता हूँ !
मयकशी की नहीं तमन्ना मुझको,
पर आज एक जाम उठाना चाहता हूँ !
नाकाबिल -ऐ- बरदाश्त हो चुकी है तपिश जिंदगी की,
कुछ लम्हा किसी की जुल्फों तले सुस्ताना चाहता हूँ !
कब से उजाड़ पड़े ज़िंदगी के इस चमन में,
कुछ दरख्त मोहब्बत के लगाना चाहता हूँ !
वक्त की बेरहमियों से उजड़ी एक महफिल में,
मैं आज फिर एक साज सुनाना चाहता हूँ !
उजड़ी हुई बस्तियों में आशियाना बनाना चाहता हूँ,
ऐ दोस्त मैं तेरी महफिल में आज आना चाहता हूँ !
Ab-Initio - Air sanbox command. Part 2
8 years ago
3 comments:
ek dum mast hai ..........
pad ker maza aa gaya ........
"Shyaar Gopesh" ko mera salaam ...
Aise hi naam kiye jao Gopesh ....
Kafi wajandaar lines hain ....
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