Friday, June 13, 2008

प्रतीक्षा

चंचल दो नयन अति चातुर,
प्रिय मिलन को अति आतुर,
सहज उठते हैं आशा से,
फिर लज्जा से गिरते हैं,
मधुर कल्पनाओं से सराबोर,
स्वप्न उपवन में विचरते हैं!!

कामिनी के मुख की सुन्दरता,
चंद्र, सूर्य से लगते हैं,
हृदय की व्याकुलता को,
मौन रहकर भी प्रकट करते हैं,
डूबते हैं कभी निराशा में,
कभी आशा से चमकते हैं,
मधुर कल्पनाओं से सराबोर,
स्वप्न उपवन में विचरते हैं!!

पथ निहार रहे प्रिय का,
लज्जा अपने में समाये हुए,
प्रियतम के दर्शन की अभिलाषा में,
आशा दीप जलाये हुए,
कभी कम्पित होते आशंका से,
फिर शुभ्र कामना से सम्हलते हैं,
मधुर कल्पनाओं से सराबोर,
स्वप्न उपवन में विचरते हैं!!

1 comment:

Unknown said...

bahut badiya.
aapki ye chupi hui PRATIBHA bahar aa hi gayi.
keep it up