पढ़ सकूं कुछ अधूरे ख़त इन आंखों में बस इतनी बीनाई बाकी है,
लिख सकूं कुछ अधूरे ख्वाव बस कलम में इतनी स्याही बाकी है.
एक आवाज दे बस कहीं से मौत मुझे और उसके हमराह हो लूँ,
मेरी अब जिंदगी तुझसे बस इतनी सी आशनाई बाकी है.
कभी देखा करते थे जिस नूर-ऐ-मुजस्सम को रूबरू,
अब तो इन यादों में बस उसकी एक परछाई बाकी है.
कभी जिस घर में तेरे साथ बिताये थे कुछ लम्हे
आज मेरे उस घर में बस एक तन्हाई बाकी है
इक सर्द आह निकलती है इस जिगर से नाम पर तेरे,
मेरे महबूब तुझसे अब तो बस इतनी ही शानाशाई बाकी है.
Ab-Initio - Air sanbox command. Part 2
8 years ago
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