Thursday, May 24, 2012


तुझसे वस्ल को ये दिल बेक़रार क्यों है,
गर ये मोहब्बत नहीं तो ये इंतजार क्यों है.

क्यों मुड़ती है मेरी हर राह तेरे दर की तरफ,
ये मुगालता मुझे रोज़ रोज़, हर बार क्यों है.

तेरा ही चेहरा नुमायाँ है हर जगह,  हर शै में,
तू हर दम मेरे होश-ओ-हवास पर सवार क्यों है.

क्यों है एक बेकली सी इस दिल में हर लम्हा,
मेरी हर शाम को तेरी आमद का इंतजार क्यों है.

खुद ही तो तुझसे दूर चला आया था कभी,
फिर अब  तेरे पास आने का इसरार क्यों है.

कोई कसर उठा ना रखी थी तुझसे दूरियां बनाने में,
फिर अपनी इस जीत पर दिल आज शर्मसार क्यों है.

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