मेरे सनम तेरी जुस्तजू में मैंने अपनी तमाम उम्र काटी है
अब तेरा आना कैसा अब तेरा मिलना कैसा जब बस आखिरी सांस ही बाकी है
कुछ कमी मेरी तदबीर में रही शायद कुछ कसूर मेरी तकदीर का भी होगा
या शायद तुझे पाने के लिए ये एक उम्र मेरी नाकाफी है
सब
सामान तैयार है रुखसती का बस खुदा हाफिज ही कहना है
तू सामने खड़ी है दीदार के लिए वही मेरे लिए काफी है
कर दे इज़हार-ए-मोहब्बत आखिरी तमन्ना ही समझ कर मेरी
इक इसी उम्मीद पर तो मैंने ये तमाम उम्र काटी है
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