Friday, May 25, 2012

एक शाम तनहा सी मेरे घर में उतर आई है 
और शब के अँधेरे मुझे निगलते जाते हैं

हर सू फैली है एक उदासी की चादर  
और दिल में कुछ ख्वाब पिघलते जाते हैं

कुछ समझ नहीं आता कि हुआ क्या है
क्यों सारे रिश्ते हाथों से  फिसलते जाते हैं

बढती जाती है खलिश सीने की हर रोज़
दरख़्त एहसासों के दिल में दरकते जाते हैं

ना जाने कितनी दूर और चल सकूंगा ऐसे
मंजिल के निशान आगे को सरकते जाते हैं

तू लुटा रहा है अपनी रहमत का दरिया गैर के घर
और हम हैं कि एक एक बूँद को तरसते जाते हैं

Thursday, May 24, 2012

मुझे बदलने की कोशिश ना कर ए ज़माने,
मैं कोई पत्थर नहीं कि तराश लिया जाऊं.

क्यों हर कोई आज ढूंढ  रहा है वजूद मेरा 
मैं खोया ही कब था कि तलाश लिया जाऊं.

तुझसे वस्ल को ये दिल बेक़रार क्यों है,
गर ये मोहब्बत नहीं तो ये इंतजार क्यों है.

क्यों मुड़ती है मेरी हर राह तेरे दर की तरफ,
ये मुगालता मुझे रोज़ रोज़, हर बार क्यों है.

तेरा ही चेहरा नुमायाँ है हर जगह,  हर शै में,
तू हर दम मेरे होश-ओ-हवास पर सवार क्यों है.

क्यों है एक बेकली सी इस दिल में हर लम्हा,
मेरी हर शाम को तेरी आमद का इंतजार क्यों है.

खुद ही तो तुझसे दूर चला आया था कभी,
फिर अब  तेरे पास आने का इसरार क्यों है.

कोई कसर उठा ना रखी थी तुझसे दूरियां बनाने में,
फिर अपनी इस जीत पर दिल आज शर्मसार क्यों है.