Monday, July 29, 2013


मुझे मालूम है तू मेरी एक आवाज़ पर दौड़ी चली आएगी,
मगर मैं एक आवारा बादल सा मेरी फितरत में रवानी है.
कैसे दे सकूंगा मैं तुझे वो आशियाँ जिसका ख्वाव तेरी आँखों में मैंने पलते देखा है
कहीं टूट ना जायें वो सारे ख्वाव वो सारी उम्मीदें जो तेरी मुझसे बाबस्ता हैं
इस से तो अच्छा है हम दिल को बहला लें आज उन्ही यादों के सहारे जो गुजिश्ता हैं
बारहा ये कहीं बेहतर होगा माजी की खुशनुमा यादों में जीना
क्योंकि मैं जानता हूँ मेरे मुस्तकबिल में अँधेरा है
क्योंकि मैं एक आवारा बादल सा मेरी फितरत में रवानी है 

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