Saturday, April 21, 2012

मेरे सनम तेरी जुस्तजू में मैंने अपनी तमाम उम्र काटी है
अब तेरा आना कैसा अब तेरा मिलना कैसा जब बस आखिरी सांस ही बाकी है

कुछ कमी मेरी तदबीर में रही शायद कुछ कसूर मेरी तकदीर का भी होगा
या शायद तुझे पाने के लिए ये एक उम्र  मेरी नाकाफी है 

सब  सामान तैयार है रुखसती का बस खुदा हाफिज ही कहना है 
तू सामने खड़ी है दीदार के लिए वही मेरे लिए काफी है 

कर दे इज़हार-ए-मोहब्बत आखिरी तमन्ना ही समझ कर मेरी 
इक इसी उम्मीद पर तो मैंने ये तमाम उम्र काटी है