Thursday, July 14, 2011

वो जो करते थे हिदायतें इश्क न फरमाने की बशर,
देखा है आज उन्हें दरबार-ऐ-हुस्न में सजदा करते

मय से अदावत जिनकी मशहूर थी ज़माने भर में,
देखा है आज हमने उन्हें राह-ऐ-मैखाना पता करते

हर बात में दिल्लगी जैसे आदत थी उनकी,
अब देखते हैं उन्हें हर बात पे चेहरा संजीदा करते

नामालूम क्या आ पड़ी क्या बदल गया अचानक,
देखते हैं उन्हें दौलत-ऐ-इश्क कूंचा-ऐ-हुस्न में अता करते

मैं न समझा उनकी अचानक बदली फितरत का सबब,
बस देख रहा हूँ हैरान आज उन्हें सब कुछ जुदा करते

कुछ तो राज़ है इसमें कुछ तो छुपा रहे हैं वो,
वरना तो कभी देखा नहीं उन्हें किसी बात में परदा करते