कभी कभी यादों के वीरानों में कुछ साए लहराते हैं, कभी कभी कुछ अपनों के उदास चेहरे नज़र आते हैं, कुछ गुनाह जो किए थे कभी अपनों की खातिर, आज उन्ही अपनों के आगे गुनाहगार नज़र आते हैं.
कुछ लिख कि कवि तेरे अन्दर भी बैठा है , बस कलम उठा और विचारों को बाहर आने दे, रोक मत प्रवाह शब्दों का जो भीतर उमड़ रहा, आज तू भावों को पन्नों पर उभर आने दे.